०- कांग्रेस-भाजपा ही नहीं विकल्प भी रहें है वोटर्स की पसंद
०- 18 लोकसभा चुनावों में 10 बार कांग्रेस, 6 बार भाजपा की जीत
दुर्ग। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही छत्तीसगढ़ के साथ-साथ दुर्ग जिले की राजनीति में कांग्रेस व भाजपा का ही बोलबाला रहा है। इसके बाद भी तीसरी ताकतों ने यहां सेंध लगाई है। यहां के मतदाताओं ने दोनों प्रमुख दलों को नकारा है। इसी वजह से आजादी के बाद से अब तक हुए18 लोकसभा चुनावों में 2 बार तीसरे मोर्चे के दल बाजी मारने में सफल रहे हैं।
दुर्ग संसदीय सीट पर पिछले 18 लोकसभा चुनावों में 10 बार कांग्रेस तो 6 बार भाजपा ने जीत दर्ज की है। एक बार भारतीय लोक दल जीती थी। वहीं एक बार भाजपा के सहयोग से जनता दल ने भी इस सीट पर जीत दर्ज की है। दुर्ग सीट पर कांग्रेस ने 1951 के पहले लोकसभा चुनाव में ही कब्जा जमा लिया था। वर्ष 1996 से पूर्व तक सीट पर कांग्रेस का लगभग एकाधिकार रहा। वहीं वर्ष 1996 के चुनाव में बदले राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा ने कांग्रेस की जीत का क्रम तोड़ते हुए सीट पर कब्जा जमाया। इसके बाद वर्ष 20०९ तक लगातार 5 बार यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। 2014 के लोकसभा चुनावों में अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई थी। 2019 में भाजपा फिर यह सीट जीतने में सफल रही।
मोहन भैया ने भेदा था कांग्रेस का गढ़
देश के पहले 6 लोकसभा चुनावों में इस सीट पर अलग-अलग राजनीतिक दलों ने कांग्रेस को चुनौती दी, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के इस गढ़ को वर्ष 1977 के 7वें लोकसभा चुनाव में ढहाने में भारतीय लोक दल के प्रत्याशी के रूप में मोहन भैया ने सफलता हासिल की। इससे पहले तक भारतीय लोकदल ने क्षेत्र में कभी भी प्रत्याशी नहीं उतारा था।
कौशिक ने दोहराया इतिहास
परंपरागत राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से अलग विकल्प के रूप में अन्य प्रत्याशी को मौका देने का क्रम वर्ष 1989 के 9वें लोकसभा के चुनाव में भी दोहराया गया। क्षेत्र में जनता दल ने पहली बार रायपुर से लाकर पुरुषोत्तम कौशिक को चुनाव मैदान में उतारा। क्षेत्र के हिसाब से नए नवेले दल और पहली बार चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशी की जीत तो दूर मुकाबले की भी स्थिति नहीं मानी जा रहा थी, लेकिन उन्होंने न सिर्फ मोहन भैया का इतिहास दोहराया बल्कि कांग्रेस प्रत्याशी को बड़े वोटों के अंतर से हराया भी।
इस बार मैदान में केवल बसपा
2009 के बाद दुर्ग संसदीय सीट पर तीसरे विकल्प को मतदाताओं का खास तवज्जो नहीं मिला है। इस बार केवल बसपा ने जिले में चुनौती पेश की है। वहीं शेष अन्य दलों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को छोड़कर किसी का जिले में कोई भी खास राजनीतिक प्रभाव नहीं है। इससे पहले तक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस, पूर्व सांसद ताराचंद साहू की पार्टी छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच, समाजवादी पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी आदि भी प्रत्याशी उतारती रही है।
सीट पर कब किसका कब्जा
1951 – डब्ल्यू एस. किरोलीकर – कांग्रेस
1957 – मोहनलाल बाकलीवाल – कांग्रेस
1962 – मोहनलाल बाकलीवाल – कांग्रेस
1967 – वीवाय तामस्कर – कांग्रेस
1971 – चंदूलाल चंद्राकर – कांग्रेस
1972 – चंदूलाल चंद्राकर – कांग्रेस
1977 – मोहन भैय्या – भारतीय लोक दल
1980 – चंदूलाल चंद्राकर – कांग्रेस
1984 – चंदूलाल चंद्राकर – कांग्रेस
1989 – पुरूषोत्तम कौशिक – जनता दल
1991 – चंदूलाल चंद्राकर – कांग्रेस
1996 – ताराचंद साहू – भाजपा
1998 – ताराचंद साहू – भाजपा
1999 – ताराचंद साहू – भाजपा
2004 – ताराचंद साहू – भाजपा
2009 – सरोज पांडेय – भाजपा
2014 – ताम्रध्वज साहू – कांग्रेस
2019 – विजय बघेल – भाजपा