Thursday, September 19, 2024

अजब-गजब शादी: न बैंड, न बाजा और न आई बारात, न तो मंत्रों का उच्चारण ही हुआ, बिना फेरे लिए सिर्फ 17 मिनट में एक-दूजे के हो गए दूल्हा-दुल्हन

0 इस शादी के हर और हो रहे हैं चर्चे, हर रविवार को कराई जाती है किसी न किसी जोड़े की शादी, फिजूल खर्ची से बचने अपनाया गया है अनोखा तरीका

दमोह। मध्य प्रदेश के दमोह जिले में 19 मई को एक ऐसी शादी हुई, जिसके चर्चे हर और हो रहे हैं। यहां न तो बैंड, ना बाजा और ना ही बारात आई। न तो किसी पंडित जी ने मंत्र का उच्चारण कराया। सिर्फ 17 मिनट में ही युवक और युवती बिना फेरे लिए 7 जन्मों के बंधन में बंध गए। हालांकि कुछ लोग इस शादी के गवाह जरूर बने, लेकिन फिजूलखर्ची थोड़ी भी नहीं हुई। बताया जा रहा है कि दमोह के इस इस गांव में हर रविवार को किसी न किसी जोड़े की इसी तरह शादी कराई जाती है।

मध्य प्रदेश के दमोह में एक अनोखी शादी 19 में को हुई। यहां के कृषि उपज मंडी प्रांगण में संत रामपाल बाबा द्वारा यह शादी कराई गई। इस शादी की खासियत यह है कि यहां दुल्हन के पिता को दहेज नहीं देना होता है और न हीं खाने पीने में फिजूल खर्ची करनी होती है।

ना तो बैंड होता है, ना बाजा और ना ही धूमधाम से बारात आती है। सिर्फ एक मंत्र में लड़का और लड़की 7 जन्मों के लिए शादी के बंधन में बंध जाते हैं। आजकल जो शादियां होती है उसको यह शादी आइना दिखाता है। समाज को दिखाने के लिए बेटी के पिता को इतने खर्च करने पड़ते हैं कि वह कर्ज तक में डूब जाता है।

बेटी के जन्म लेने के बाद से ही वह अपनी कमाई का छोटा-छोटा हिस्सा बचाकर बेटी की शादी के लिए जमा करता है। शादी में फिजूल खर्ची भी काफी होती है, दहेज देना पड़ता है तब जाकर वह अपनी बेटी की शादी कर पाता है। इन सब के बीच यह शादी काफी परे हैं।

बिना दहेज के कराई जाती है शादी

दमोह के इस गांव में कराई जाने वाली शादी की खासियत यह है कि इसमें एक बेटी के पिता को दहेज नहीं देना पड़ता है। न हीं फिजूल खर्ची करनी पड़ती है। इस संबंध में संत रामपाल बाबा का कहना है की दहेज की कुप्रथा को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया गया है।

उनके द्वारा हर रविवार को इस तरह की शादी कराई जाती है। इस शादी का उद्देश्य फिजूल खर्ची पर रोक लगाकर समाज को एक नई दिशा देना है, ताकि लोग भी इस और अपने कदम बढ़ा सकें।

इस अनोखी शादी को कहा जाता है “लवेड़ी”

दमोह के इस क्षेत्र में की जाने वाली शादी को “लवेड़ी” कहा जाता है। यहां पहली शादी धर्मेंद दास और अंजना दासी की हुई है। शादी में खर्चे कोई खर्चे न हों, इस वजह से दूल्हा-दुल्हन तक को नहीं सजाया जाता है। सिर्फ दोनों को आमने-सामने बैठ कर एक मंत्र पढ़ा जाता है। फिर दूल्हा दुल्हन को लेकर घर चला जाता है।

Related articles

spot_img