Sunday, March 9, 2025

Randam start : चांद के दीदार के साथ रमजान के पवित्र महीने की शुरुआत, मस्जिदों में तरावीह की नमाज का आगाज

Randam start चांद के दीदार के साथ ही इस्लाम के सबसे पवित्र महीने रमजान की शुरुआत रविवार से हो गई। शनिवार की शाम को रमजान का चांद नजर आया। आलम-ए-इस्लाम में इस महीने की आमद के मद्देनजर शहर के मुस्लिम समाज ने एक-दो दूसरे को मुबारकबाद दी।

अंबिकापुर। Randam start चांद के दीदार के साथ ही इस्लाम के सबसे पवित्र महीने रमजान की शुरुआत रविवार से हो गई। शनिवार की शाम को रमजान का चांद नजर आया। आलम-ए-इस्लाम में इस महीने की आमद के मद्देनजर शहर के मुस्लिम समाज ने एक-दो दूसरे को मुबारकबाद दी। रोजे, नमाज, कुरआन और तरावीह के महीने को लेकर शनिवार की रात को सभी मस्जिदों से ऐलान किया गया। शनिवार से  तरावीह की शुरुआत भी हो गई।

मुस्लिम समुदाय में मान्यता है कि यह महीना अल्लाह को सबसे अधिक पसंद है। इस पूरे महीने मुसलमान रोजा रखेंगे। यानि सुबह-ए-सादिक (सूर्योदय से पूर्व) से लेकर तुलूब-ए-आफताब (सूर्यास्त तक) मुस्लिम समाज के लोग न कुछ खाते है और न ही पीते है। इस रोजेे (उपवास) की सख्ती ऐसी है कि गले के नीचे एक कतरा थूक का भी नहीं जाता है।

साइंस में भी है रोजे का महत्व

विज्ञान की मानें तो रोजा सेहत के लिए फायदेमंद होता है और इंटरमिटेंट फास्टिंग (दिनभर कुछ भी न खाना) वजन कम करने का लोकप्रिय तरीका होता जा रहा है। क्या खाना है इस पर फोकस करने की बजाय इंटरिटेंट फास्टिंग में खाने के समय को लेकर बात होती है। इसमें हर दिन कुछ निश्चित घंटों के लिए खुद को भूखा रखना शामिल है। इसके पीछे का विचार है कि आपका शरीर एक बार में पूरी शुगर को इस्तेमाल कर लेता है, तो इसके बाद यह फैट का इस्तेमाल करता है और इससे वजन कम होता है।

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इस प्रक्रिया को मेटाबोलिक स्विचिंग के नाम से जाना जाता है। अध्ययनों ने दिखाया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से सेहत को जो फायदा होता है उसमें ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल का कम होना। शरीर के अंदर सूजन में कमी आना। इंसुलिन रेस्पांस में सुधार और टाइप 2 डायबीटीज का खतरा कम होना। रमजान के रोजा में ये सारे फायदे होते हैं।

न्यूट्रशनिस्ट ने दी सलाह

न्यूट्रशनिस्ट कहते है कि आम तौर पर रमजान में लोगों का वजन एक किलोग्राम तक कम हो जाता है, लेकिन वह चेतावनी भी देती है, अगर आप इफ्तार में अधिक भोजन लेंगे तो वजन बढ़ भी सकता है। उनके मुताबिक, इंसानों में अधिक खाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। हमें जितने ही पकवान दिए जाएं हम उतना ही खाते हैं और स्वाभाविक है कि इफ्तार के दौरान खानों से सजी एक बड़ी मेज इसका सटीक उदारहण है। आपके सामने जो कुछ भी आए, सब खाने की जरूरत नहीं है। इसलिए चुनिंदा चीजें खाएं और धीरे धीरे खाएं।

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