नई दिल्ली . बैंकिंग-फाइनेंस से लेकर रोजमर्रा से जुड़ी जरूरी तमाम सेवाओं के लिए लोगों की जेब पर बोझ बढ़ रहा है। बैंक और अन्य सेवा प्रदाता कंपनियां लगातार अपने शुल्कों को बढ़ा रही हैं, जिससे लोगों की जेब से धीरे से हर वर्ष हजारों रुपए सिर्फ सर्विस चार्ज के तौर पर निकल रहे हैं। कई शुल्क ऐसे हैं, जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं है, या फिर नियमों की ठीक से जानकारी नहीं होने के कारण लोगों को जुर्माने के तौर पर वह धनराशि चुकानी पड़ रही है। जून में टेलीकॉम कंपनियों ने अपने रिचार्ज प्लान की कीमतों में 27% तक इजाफा कर दिया, साथ ही ऑनलाइन पेमेंट व रिचार्ज की सुविधा देने वाली कंपनियां भी प्रति रिचार्ज 1.5 रुपए से 2.5 रुपए अतिरिक्त वसूल रही हैं।
भुगतान सर्विस के तौर पर अब डिजिटिल पेमेंट की सुविधा देने वाली कंपनियां भी अतिरिक्त शुल्क ले रही हैं। उधर, फास्टैग सेवा प्रदाता कंपनियों ने भी अब कई तरह के शुल्क लगाने का फैसला लिया है। इसमें चार श्रेणी में शुल्क भारतीय राष्ट्रीय भुगतान लिमिटेड ने निर्धारित किया है लेकिन इसके अतिरिक्त कंपनियों ने भी कुछ अन्य शर्तं जोड़ दिया है। जैसे अगर तीन महीने तक फास्टैग से कोई ट्रांजक्शन नहीं होता है तो उसे निष्क्रिय माना जाएगा, जिसे एक्टिव करने के लिए शुल्क देना होगा।
निजी से लेकर सरकारी क्षेत्र के बैंक ग्राहकों को दी जा रही तमाम सुविधाओं के नाम पर शुल्क वसूल रहे हैं। साथ ही न्यूनतम बैलेंस खाते में न होने पर लोगों के खाते से उल्टे जुर्माने के तौर पर भी बड़ी धनराशि वसूल रहे हैं। बीते 5 वर्षों में ही सरकारी बैंकों ने 8500 करोड़ रुपए ग्राहकों से वसूला है। इसके अतिरिक्त भी बैंक तमाम सेवाओं के नाम पर शुल्क वसूल रहे हैं। पहले तक जहां डुप्लीकेट पासबुक के लिए 100 रुपय देने होते थे, वही अब आप 300 रूपय चुकाएंगे। साइन वेरिफाई करने के लिए भी शुल्क देना होगा। अब RTGS और NEFT के लिए भी नई दरें लागू होंगी।
पिछले दिनों फूड डिलिवरी करने वाले जोमैटो, स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म ने भी अपना शुल्क बढ़ा दिया। इसमें 20% से 25% तक का एक झटके में इजाफा किया गया। पहले प्रति ऑर्डर प्लेटफॉर्म शुल्क 2 रुपये लिया जाता था, जिसे बाद में बढ़ाकर 5 रुपए किया गया और अब इसे 6 रुपए प्रति ऑर्डर किया गया है।