(01) सनातन धर्म के अनुसार वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। इस दौरान मां दुर्गे की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है।
“सर्व मंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके,
शरण्ये त्र्यंबके गौरी, नारायणी नमोस्तुते,
”नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्”
अर्थ- जो नीले और काले पर्वत की तरह चमकिला है, सूर्य के पुत्र और यम के बड़े भाई छाया उनकी माँ और मार्तण्ड (सूर्य) के पुत्र , ऐसे शनिदेव को मैं नमन करता हूँ।
खबर-नवीस/धर्म डेस्क। आषाढ मास में मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्रि इस बार प्रतिपदा 6 जुलाई शनिवार से शुरू हुई है जो 15 जुलाई सोमवार तक रहेगी। इस बार नवरात्रि का पर्व 10 दिन मनाया जाएगा। पुराणों की मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गे की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है।
वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। बता दें, अप्रत्यक्ष नवरात्रि को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र और आश्विन की महीने में मनाई जाती हैं, और अप्रत्यक्ष यानी कि गुप्त आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती हैं।
साधना के लिए साधक चले जाते हैं गुप्त स्थान पर
गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51 पीठों पर भक्त विशेष रूप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ एवं आषाढ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है, जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजनिक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है। आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है। वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का भी विशेष महत्व है।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥”
प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र
गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी।शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है… गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।