आजादी का सबसे बड़ा दीवाना..हंसते-हंसते चढ़ गया सूली, शहीद-ए-आजम भगत सिंह को नमन
28 सितंबर 1907 को जन्मे शहीदे आजम की शनिवार को 117 वीं जयंती है | न सजा का डर, न मरने का गम बस जुबां पर था इंकलाब जिंदाबाद |
जब आजादी के लिए लड़ते हुए 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी से लटका दिया था | इस बात को करीब 93 साल गुजर गए हैं |
उन्हें लिखने और पढ़ने का बहुत शौक था, साथ ही उनके बारे में कहा जाता था कि उनकी शायरियों को सुनकर आदमी का इश्क इंकलाब हो जाएगा | उनके शब्दों में वतन से प्रेम समाया हुआ था |
'लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा. मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है मेरा तुमसे, कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा |
भगत सिंह के साहित्यिक प्रेम की सबसे बड़ी पेशकश उनकी जेल डायरी है |