Friday, September 20, 2024

अद्भुत… आनंदित.. श्रद्धा से भरी हुई भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा है बेहद रोचक और आश्चर्य से भरा हुआ

जगन्नाथपुरी भारत के चार धामों में से एक है जहां आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से पुरी की रथयात्रा शुरू होती है

खबर-नवीस/धर्म डेस्क। आज से जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हुई। अद्भुत.. आनंदित.. श्रद्धा से भरी हुई भगवान जगन्नाथ की रथ से जुड़ी यात्रा भी बेहद रोचक है। हम इससे जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से पुरी की रथयात्रा शुरू होती है। हर साल आषाढ़ माह में ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है।जगन्नाथपुरी भारत के चार धामों में से एक है।

श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रसिद्ध हिंदू मंदिर जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस सुप्रसिद्ध मंदिर को धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है। वहीं, इस स्थान को नीलांचल, नीलगिरी और शाकक्षेत्र जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस साल पुरी की जगन्ननाथ यात्रा 7 जुलाई, रविवार से शुरू हुई है। इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ का रथ, देवी सुभद्रा का रथ और भगवान बलभद्र का रथ निकाला जाता है। यहां हम बता रहे हैं भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ होता है।

रथों की विशेषताएं..
हर साल पुरी की रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है। इस रथ यात्रा के लिए भगवान श्रीकृष्ण, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के लिए नीम की लकड़ियों से रथ तैयार किए जाता है। सबसे आगे बड़े भाई बलराम का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और पीछे जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इन तीनों रथों के अलग-अलग नाम व रंग होते हैं।

हर रथ का अलग महत्व
बलराम जी के रथ को तालध्वज कहा जाता है और इसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है और यह रथ काले या नीले रंग का होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष या गरुड़ध्वज कहलाता है और यह रथ पीले या लाल रंग का होता है। नंदिघोष की ऊंजाई 45 फीट होती है, तालध्वज 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन पथ तकरीबन 44.7 फीट ऊंचा होता है।

तीन किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर तक यात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। मान्यतानुसार इस स्थान को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि विश्वकर्मा द्वारा इसी स्थान पर तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था और यह भगवान जगन्नाथ की जन्मस्थली है। यहीं तीनों देवी- देवता 7 दिनों के लिए विश्राम करते हैं। आषाढ़ माह के दसवें दिन विधि-विधान से रथ मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यात्रा को बहुड़ा कहा जाता है।

Related articles

spot_img